ज़ख्म हरा कर देती है

भुला के राह-ए-इश्क़ तेरा मान तो रख लूँ
तेरी खामोश सिसक ज़ख्म हरा कर देती है
न देखती मुड़कर मुझे तो बात अलग थी
नजरें मिला के फेर लेना ज़ख्म हरा कर देती है

चिंगारी बुझ गई होती उल्फत-ए- ख्वाब के मेरे
तेरा अरसे पे मिल जाना ज़ख्म हरा कर देती है
नफ़रत ही सही पेश कर दो बेबाकी से
तेरा खामोश रह जाना ज़ख्म हरा कर देती है

झूठ बोलती है परिजन से मुझसे दो बातें करने को
विदाई पे अनछुआ-बोसा ज़ख्म हरा कर देती है
हर सुबह होती है गलतफहमियां जी लूंगा तेरे बिन
रैन ख्वाबों में तेरे जीना ज़ख्म हरा कर देती है

तोड़ भी लेती बंधन इश्क़ के राह नहीं धूमिल होता
इंकार इकरार की दुविधा ज़ख्म हरा कर देती है
किस्मत में हो ग़र आ जाओ बिन आजमाइश के
हर घड़ी हर क्षण तड़पाना ज़ख्म हरा कर देती है

सप्रेम लेखन: चन्दन Chandan چاندن

क्या समझूँ

तेरी बेरुखी को मैं क्या समझूँ
महज़ संयोग या साज़िश समझूँ
यकीं नहीं आता अपनी ही किस्मत पे
किस्मत कहूँ या तेरा एहसां समझूँ

साज़िश खुद ही रचते हो
फिर रास्ता तुम ही गढ़ते हो
इत्तेफाक के इस पुलिंदे को
इश्क का कौन कायदा समझूँ
तेरी बेरुखी को मैं क्या समझूँ

एहसास इश्क़ का ही था
कि चाँद में चेहरा दिखता था
वरना ब्रह्माण्ड के ग्रह उपग्रह में
बिम्ब प्रतिबिम्ब मैं क्या समझूँ
तेरी बेरुखी को मैं क्या समझूँ

सहनशीलता सीखी है मैंने
अपने घर के सरकारों से
मतलब की है दुनिया सारी
रिश्ते नाते मैं क्या समझूँ
तेरी बेरुखी को मैं क्या समझूँ

सप्रेम लेखन: चन्दन Chandan چاندن