अजनबी सी लगती है

सेहर की धुप की किरने तेरे चेहरे पर जो पड़ती है
सच मानो मेरी जान दिल में हलचल सी होती है
तेरी मासूमियत का आशिक वो आसमा भले हो
पर तुझे छुए वो किरने दिल में तपिश भी होती  है
नूर तेरे चेहरे का खुदा ने रचा भले हो
पर उसका हक जाताना तुमपे ज्यादती सी लगती हैै
सफ़र-ए-जिन्दगी में तुम मिली मुझे इस मोड़ पर
देखा हुआ चेहरा भी कुछ अजनबी सी लगती है
काश कि खुदा कभी सुन सके मिन्नतें मेरी
बदले कीमत के सही कर दे पूरी हसरतें मेरी
फासले दो गज का भी अब मीलों सी लगती है
देखा हुआ चेहरा भी कुछ अजनबी सी लगती है
जब सुना खुद मिन्नतें मेरी देर हो चुकी थी तब
मंजिलें मेरी तुम्हारी द्वि ओर हो चुकी थी तब
अब मेरा हक जताना तुम पे खुदगर्जी सी लगती है
देखा हुआ चेहरा भी कुछ अजनबी सी लगती है
Written By:
Chandan

3 comments: