कहीं ये तू तो नहीं

सुर्ख हवाओं का देख के लगता है
कहीं ये तू तो नहीं
अनजान चेहरों पे नज़र टिकता है
कहीं ये तू तो नहीं
मैं साहिल पे बैठा रहा रात भर
इक लौ के सहारे आँख भर
लौटा तो मुड़ के देखा फिर से
कहीं ये तू तो नहीं
मैं अलाप कोई लगाऊं
सुर-ताल कोई छेड़ू
गीतों में जिक्र अजनबी की
कहीं ये तू तो नहीं
मैं मुस्किल में उलझ जाऊं
सौ बार फिसल जाऊं
हौसला संभल जाने का
कहीं ये तू तो नहीं
क़द्र दीवान का करना
रसमय मन को भिगोना
खोया ख्वाबों में जिसके "चन्दन"
कहीं ये तू तो नहीं
written by-
Chandan