क्यों नहीं

ख्वाब कभी हकीकत बन जाती क्यों नहीं
गर है वो हमारी तो जताती क्यों नहीं
दूरियां बढाकर तडपाती है खुद को
मिलना ही है गर मुझसे तो पास आती क्यों नहीं
सपनो में रोज मेरी सहजादी बनकर आती है
हकीकत में पर्दा कभी उठती क्यों नहीं
कहते तो हैं की वो सिर्फ हमारे हैं
फिर अपनों की तरह वो मुझे सताती क्यों नहीं
मेरी हर इक खबर रहती है उनके पास
फिर अपनी खबर मुझे वो बताती क्यों नहीं
तडपाती है मुझे वो मुझे अपनी दुश्मन की तरह
गर इरादा है नेक तो खुलेआम बोल पाती क्यों नहीं
ख्वाब कभी हकीकत बन जाती क्यों नहीं
गर है वो हमारी तो जताती क्यों नही
          Written By:-
       Chandan Kumar Gupta

डर लगता है

दरवाज़ा खुला है इन्तजार मे उनके
डर लगता है दस्तक दरवाज़े पे किसी और की न हो
तसस्वुर मे खोया रहता हूँ मै  उनके
डर लगता है दस्तक दिल पे उनकी किसी और की न हो
दौर लगाता हूँ वक्त के साथ हर कदम पे
डर लगता है साथ उनका न छुट जाए वक्त की दौर मे
उँचा बहुत उँचा जाने के सपने देखता हूँ
डर लगता है कहीं फिसल न जाउँ इस चाहत मे
शौक बदलने का  सपने को हकीकत मे है पुराना मगर
डर लगता है चंद खुशनुमा हकीकत सपने न बन जाए
सिकवे उन्हे भी है गिला हमे भी है बेशक मगर
डर लगता  है दुरियाँ न जीत जाये जिद्द की जंग मे
                      Written by:-
              Chandan Kumar Gupta