यूहीं

सोचता हूँ यूहीं कभी मैं,
है मेरी गलती या हूँ मजबूर मैं,
अलावा अपने स्वार्थ के क्यों हूँ बेक़रार मै,
है ये मेरी बड़प्पन या है बेवकूफी मेरी
कि सह रहा हूँ हर सितम बिन सवाल मै,
आश है नजराना का बदले अपने त्याग के,
मिलेगी हर चाहत या हो जाऊंगा कसूरवार मैं,
जद्दो-जिहदके इस जीवन में उम्मीद है इक लौ की,
मिले न ग़र वो हमे मर जाऊंगा बेनूर मै,
सोचता हूँ युहीं कभी मै...
         Written By:-
Chandan Kumar Gupta


वो

शाम आई और गुजर गयी अधूरेपन का एहसास देकर
बैठा रहा मै इंतज़ार में दिल जुड़ने की आश लेकर
दिल जुड़े न जुड़े कोई गम नहीं हमे अब
आह भरा मैं तब जब कोई कह गया पराया खास बनकर
महज नाम जुड़ने भर से डरती वो मेरा रकीब से
अब तो जुदा कर देती है मेरा नाम अपने नाम से वो दोस्त कहकर
चाँद को देखकर हर रात करता था दीदार जिसका मै
मेरे जीवन में वो रहना चाहती है महज इक दाग बनकर
कहने को मेरी कहानी चाँद लफ़्ज़ों की मोहताज़ है
पर दोहराने पे उसकी हर बात डसती मुझे नाग बनकर
कहता है इक मन मेरा मिटा दे उसकी हर यादों को
कैसे समझाउं दिल को मै बसी है मेरे धड़कन में वो साँस बनकर
           Written By:-
        Chandan Kumar Gupta

कितना आसाँ है

दिल में हो लाखों बातें जुबां पे ख़ामोशी लाना कितना आसां है
दिल में छुपाये दर्द महफ़िल में मुस्कुराना कितना आसां है
जिस दर्द से हम लोगों को महरूम किया करते हैं
खुद उस दंगल में फंसकर निकलना कितना आसां है
इश्क की गलियारों में हर इक पहलु पे नज़र रखते हैं हम
एक भी पहलु को खुद नज़र न आना कितना आसां है
देते हैं नसीहत लोग 'इश्क में है दर्द न लगाना गले से इसे'
इश्क के कुचे में पड़ी इक नज्र से नज़रे चुराना कितना आसाँ है
गिरकर संभलने की सहानुभूति हर बात में देते हैं लोग
उम्मीदे-ए-राह में कभी गिरकर देखो संभालना कितना आसाँ है
कहने को बड़ी-बड़ी बातें चंद लम्हों में कह देते हैं लोग
कभी हकीकत में कदम रख के देखो करना कितना आसाँ है
हर इक गुनाह की माफ़ी तो बेझिझक मांग लेते हैं लोग
कभी गुनाह का शिकार बनके देखो माफ़ करना कितना आसाँ है
दिल में हो लाखों बातें जुबां पे ख़ामोशी लाना कितना आसां है
दिल में छुपाये दर्द महफ़िल में मुस्कुराना कितना आसां है
                                       Written By:-
                               Chandan Kumar Gupta











अल्फाज़ कहाँ से लाऊं


अल्फाज़ कहाँ से लाऊं तेरी यादें बयां करने को
जलता जा रहा हूँ दिन-ब-दिन तुझसे मिलने को
काश कभी किस्मत भी हमारी थक जाये तरसने को
साथ हो जाएँ दो दिल कभी साथ हंसने को
वादियाँ भी बाहें फैलाये है हमें कसने को
तू भी आ जा साथ मेरे निर्वाह करने को
यूँ तो गुल बहुत है गुलशन में महकने को
पर इन्तजार में बैठा हूँ गुलाब के खिलने को
गमनाक ख़लिश तेरे हिज्र का महरूम करने को
आज भी इन्तजार में हूँ ये गम दूर करने को
अल्फाज़ कहाँ से लाऊं तेरी यादें बयां करने को
जलता जा रहा हूँ दिन-ब-दिन तुझसे मिलने को
                        Written By:-
                   Chandan Kumar Gupta

मुझे मेरी जिन्दगी दे दो



मै इक आवारा जिन्दगी ढूंढता मुझे मेरी जिन्दगी दे दो
न चाहिए जायदाद, न सोहरत, न कोई उपनाम
न हो कोई बंधन, बस इक पल आज़ादी की मोहलत दे दो
मुझे सच पढ़ाते हुए खुद सच से क्यों मुकर गए
सच मत सिखाओ मुझे या फिर सच्ची दुनिया दे दो
मै इक आवारा जिन्दगी ढूंढता मुझे मेरी जिन्दगी दे दो
दे ना सको ग़र हौसला हार में जीत में उत्सव किस काम की
आसमां में उड़ न सके तो क्या जमीं से जुड़ने का मौका दे दो
महल ना जिसका बन सके क्या घर में रहने योग्य नहीं
नहीं रहना पत्थरों के घर में मुझे मेरा आशियाना दे दो
मै इक आवारा जिन्दगी ढूंढता मुझे मेरी जिन्दगी दे दो
                       Written By:-
                Chandan Kumar Gupta




A Question to Aamir


चिंगारी इक पल का जलाकर चुप क्यों कोई हो जाता है
लौ किसी दीपक की जलने तक ठहर वो क्यों नहीं पाता है
क्या झूठ इतना ताक़तवर है की वो अंत तक डटा रह जाता है
या सच इतना कड़वा है की वो स्थिर नहीं रह पाता है
उठती है जब कोई आग मन में शोलों सा भड़क जाता है
शबनम सा कोई आवे तो मन सुलगा उसे क्यों नहीं पाता है
इक शख्स किसी दीपक को बार-बार सुलगाता है
कुछ वक़्त की आंधी बुझाता है कुछ जलता रह जाता है
                                 आपने भी इक लौ को बड़ी सिद्दत से छेड़ा है
                                 सेहर हुई गर्मजोशी से अब धुंधला नजर आता है
                                 इस सच के प्रज्वलित होने तक क्या आप टिक पाएंगे
                                  इक आन्दोलन की नीव रख इतिहास में नाम रचाएंगे
                                  या मन की भड़ास निकालकर संतुष्टि पा जायेंगे
                                  मोर्चा संभाल कर रण का आप भी पीठ दिखायेंगे
             Written By:-
       Chandan Kumar Gupta

समय था वो भी समय है ये भी



इक शब्द आहट का सुनकर चहकना समय था वो भी
आज परिचय के बाद भी पूछना 'आप कौन?' समय है ये भी
कभी सपनो की दुनिया सजाते न थकना समय था वो भी
आज हकीकत सह-सहकर थकना समय है ये भी
सोते-जागते यूँ बातों का ताना-बाना बुनना समय था वो भी
आज साधन-संपन्न होकर भी बातों को तरस जाना समय है ये भी
रूठना-मानना, गाना-गुनगुनाना समय था वो भी
न है कोई मौन-व्रत फिर भी बोल ना पाना समय है ये भी
कवो भीभी बारिश में भी नक़ाब हटाना समय था
आज गर्मियों में भी परदे का गिराना समय है ये भी
बिन सवाल किये विश्वाश करना समय था वो भी
आज हर जवाब में साजिश का शक होना समय है ये भी
इक शब्द आहट का सुनकर चहकना समय था वो भी
आज परिचय के बाद भी पूछना 'आप कौन?' समय है ये भी
                                     Written By:-

                            Chandan Kumar Gupta














                                                           


विजातीय निकाह



तेरे चेहरे की नूर आती है हरपल मेरे ख्वाबों में
कि नकाब हटा दो चेहरे से अब और इंतज़ार नहीं होता
मिलकर एक होनेवाले क्या जाने आह जुदाई का
पढ़ लो मुझे जब इक पल तेरा दीदार नहीं होता
तोड़ दो सारे बंधन आ जाओ मेरी बाँहों में
कि थक चूका हूँ सुनकर विजातीय निकाह नहीं होता
चाँद और सूरज बरक़रार रहे आसमां कि प्रांगन में
लाखों तारे टूट गिरे आसमां को कोई परवाह नहीं होता
दे न दे ज़माना साथ हम मजबूत करेंगे इस बंधन को
इन्सां का भले हो गुनेहगार दीवाना खुदा का नहीं होता
                            Written By:-
                    Chandan Kumar Gupta

दिवान-ए-चन्दन


चाँद में सूरत देखने की कोशिश तेरी हर शब् की मैंने
तेरी सूरत नहीं लेकिन ऐसी कि चाँद दिखा पाए
आइना तो टूट जाता है चाँद कहाँ बच पाए
सुना था निशानी रह जाती है ग़र टूटे को जोड़ा जाये
चाँद में दाग भी वही निशानी है ये महसूस की मैंने
चाँद में सूरत देखने की कोशिश तेरी हर शब् की मैंने
दिदार-ए-ख्वाहिश है दिल में बस तुझसे रु-ब-रु हो जाये
जिसने चाँद को शर्मिंदा किया जरा सी नुमाइश हो जाये
निराधार तेरे और चाँद की कोई तशबीह न हो जाये
इसलिए दिवान-ए-'चन्दन' सारी तेरे नाम की मैंने
चाँद में सूरत देखने की कोशिश तेरी हर शब् की मैंने
                      Written By:-
                 Chandan Kumar Gupta

इश्क! तेरे लिए


तेरी मोहब्बत के लिए हमने अपनी पहचान बदल ली
परवाह किये बगैर दुनिया का तेरा साथ चुन ली
ग़र होता खुदा मौजूद ज़मी पर तो देखता ये नज़ारा
जात-पात क्या धर्म क्या हमने नमो-निशां बदल ली
तेरी मोहब्बत के लिए...........
है निशा का आगोश इतना यहाँ जाति-धर्म के नाम पर
देख बंदिशें इश्क पर, हमने तो चश्मनम कर ली
तेरी मोहब्बत के लिए...........
तामीर इश्क की रखी गई थी आदिशक्ति के काल से
बस गिलाफ हटाकर नफरत-द्वेष का हमने तो सहर कर ली
तेरी मोहब्बत के लिए..............
                            Written By:-
                  Chandan Kumar Gupta

मै और तेरी याद

कैसे बताऊँ तुम्हे कितना याद करता हूँ
उड़ेलता नहीं बस दिल में दबाये रखता हूँ
तुम भी तो नाम लिखकर मेरा मुझे याद करती होगी
जुड़ते ही मेरा नाम रकीब से तपिश-ए-दिल होती होगी
रातों को आँखे खोलकर तस्सवुर मेरी ही करती होगी
दिन को, मेरी इक नज़र के लिए, सजावटे-जामल करती होगी
मै तो नविस्तो-ख्वांद छोड़कर तेरी आवाज को तड़पता हूँ
न पाऊं गर तेरी आवाज अतीत की याद में खो जाता हूँ
याद तो अतीत की तुम्हे भी आती होगी
आज भी मेरे नज़्म तेरे दिल को छू जाती होगी
छेड़कर तेरे मन की तार को तुझे खूब सताती होगी
फिर सुनने को आवाज मेरी तड़प तुम भी तो जाती होगी
मैं तो हर आहट में तेरे आने की उम्मीद करता हूँ
तुम तो नहीं आती फिर भी तेरा एतिकाद करता हूँ
कैसे बताऊँ तुम्हे कितना याद करता हूँ...
                          Written By:-
                       Chandan Kumar Gupta

You'r mine

I would hurt you never wanted
why have you been with me parted
I kept you in my heart as mine
why couldn't get space in heart of thine
The way to reach your heart is very zigzagged
But I am tough enough not to be scrapped
One day I will strongly be embraced
In the way endured battles be faced
Once you hug me as imparted part of mine
All the battles like mountains be stars & shine
                                Written By:-
                         Chandan Kumar Gupta

हसरत-ए-दिल


ये गुल ये गुलशन नज़र ये नज़ारें
हसरत इस दिल की चमन ये बहारें
उम्मीद की शहर में मंजिल की पुकारें
जिन्दगी की भवंर में फंसे अरमान हमारे
समृद्धि के क्षण तूफान भी बन जाते हैं बहारें
जैसे आबरू की तलाश में रिश्तों की कतारें
भले अनजान, बोसा को तैयार, जब चमकते हों सितारे
ग़र ख़राब हो मौसम, चीख को भी दबा देती है ललकारें
कहते हैं बड़े-बुज़ुर्ग, तकदीर भी कुछ होती है प्यारे
और तस्वीर तकदीर की कोई कैसे सवाँरे
सवारने बैठे तो बड़ी तेजी से बदल जाते हैं तारें
समय किसी का कहीं करे इन्तजार कहाँ रे
ये गुल ये गुलशन नज़र ये नज़ारें
हसरत इस दिल की चमन ये बहारें
                                                                Written By:-
                                                                  Chandan Kumar Gupta

क्यों

मन की भावना कहीं विलीन क्यों होती है
किसी की याद में दिल ग़मगीन क्यों होती है
हर सपने तो किसी के पुरे नहीं होते,
तो फिर ये मन सपनों में शरीक क्यों होती है
मन की भावना कहीं विलीन क्यों होती है
किसी की याद में दिल ग़मगीन क्यों होती है.
देखा है चाँद को मैंने नज़रे फेरते हुए,
देखे कई वादों से वादाफ़रोख्त को मुकरते हुए,
फिर भी चाँद से दीदार-ए-जुर्रत क्यों होती है
इन्सां को कसम-ओ-वादों पे यकीं क्यों होती है
मन की भावना कहीं विलीन क्यों होती है
किसी की याद में दिल ग़मगीन क्यों होती है

                          Written By-
                                  CHANDAN KUMAR GUPTA